Followers

Friday 20 November 2015

सर्द मौसम



मौसम बदल रहा है
और मिजाज़ भी
हल्की ठण्ड जहाँ शरीर में सिरहन पैदा कर रही है
वहीँ तुम्हारा चुप रहना मेरे मन को चीरे जा रहा है
सर्द मौसम की शुरुआत में मानो
तुम्हारी गर्माहट भी कम होती जा रही है
ठंडी हवाएं भी शुरू हो गयी
और तेरी दूरियां भी बढ़ती जा रही हैं
मैं न तो इस बदलते मौसम को रोक पा रही हूँ
और न ही तुझे थाम पा रही हूँ
न जाने क्यों एक एहसास है कहीं
सर्दी के बढ़ते बढ़ते जहाँ एक ओर कोहरा जमने लगेगा
वहीँ तेरे और मेरे बीच भी एक गहरा धुंधलापन सा छा जाएगा
जैसे किसी पर्वत पर बर्फ का गिरना होगा
वैसी ही तू भी शायद जमता चला जाएगा
नहीं पता था कि ऐसा एहसास हमारी पहली सर्दी ही मुझे करवाएगी
मैं तो उस ठण्ड के इंतज़ार में थी
जहाँ तेरी गर्माहट मुझसे लिपटेगी
जहाँ तू रजाई सा मुझे ओढ़ नींद में भी मुझे अपनी साँसों की गर्मी से संभाले होगा
न जाने कैसे तू इतना दूर हो गया
कैसे ये आने वाली सर्दियां भी तेरे बिछड़ने की दस्तक दे रही हैं
और मैं अभी से कांप रही हूँ उस जाड़े की सुबह को सोच कर
जहाँ तू बर्फ सा मेरे पास तो होगा
पर सूरज कि तरह कहीं बहुत दूर शायद दिखाई भी न पड़ेगा  !!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!

No comments:

Post a Comment