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Friday 20 November 2015

पहेली



पहेली जैसी ज़िन्दगी और सफ़र के ये अंधे मोड़
न जाने आगे किस से टकराना होगा
कोई बड़ी गाडी होगी या
कोई खाली अँधा मोड़ !!!!
कितनी पहेलियाँ होंगी और न जाने कितने हल
किसी खम्बे के नीचे बैठ के सोचूंगी
या किसी पुल के निचे से गुज़ुरुंगी
कोई सड़क सीधी भी होगी
या उन मोड़ो पर अंधी सी मैं खड़ी रहूंगी
ज़िन्दगी का हर मोड़ तो तय है
जैसे हर बस का सफ़र और मंजिल
पर रस्ते की खबर नहीं
कब कौन सा मोड़ कहाँ ले जाए और मंजिल कैसे मिल जाए
सच है
ज़िन्दगी एक पहेली ही तो है
जवाब पता होते हुए भी ढूंढना कठिन है
अंधे मोड़ों से भरा ये सफ़र ही तो है
जो शायद ले जा रहा है पहेली सुलझाने
और मैं भी चलती जा रही हूँ अंधी सी
कभी गुज़रती पुल से तो कभी थक के रुक जाती खम्बे के नीचे !!!!!!!!!!  नीलम !!!!!!!!!!!!!

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