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Friday 12 February 2016

बेशर्म सी मैं .....



1.  बेशर्म सी मैं .....

रात में चमेली मेहकी है
चाँदनी भी मुस्कुरायी है
पेड़ की डाली पर बैठी कोयल भी गुनगुनायी है
कहीं दूर से तेरी आवाज़ आयी है
मुझे पुकारती
मुझे नीँद से जगाती
मैं तो तेरी कुछ नहीं लगती
फिर भी तेरी पुकार सुन उठ बैठ जाती
बेशर्म सी मैँ तकिये में मुँह दबाये
बालों को सुलझाती
उम्र रिश्तों का लिहाज़ ही न रख पाती
तुझे छिपाने के लिये न जाने कितने बहाने बनाती
रात मेहकती चाँदनी की मुसकान के साथ
मेरे कानों में गूंजते तेरे स्वर के साथ
कोयल भी प्रेम गीत सुनाती
तेरे हाथों का स्पर्श ढूँढ़ती
बेशर्म सी मैं बिस्तर सेहलाती
मैं तो तेरी कुछ नहीं लगती
कुलटा जनम जली न जाने क्या क्या
फिर क्यूँ कहलाती
तेरे इश्क़ का यों भेस बदल कर आना
और मुझको ठग ले जाना
किसको कैसे समझाती
बेशर्म सी मैं कैसे खुद को सम्भाल पाती
जग जाहिर जब होगा मन मेरा
कुलटा जनम जली फिर कहलाऊंगी
पर रात चमेली सी महकेगी बिना डरे
चाँदनी भी मुस्कायेगी बादलों के परे
और बेशर्म सी मैं जागुंगी तुझे सीने से लगाये
कहीं सब से दूर परे  !!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!!

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