एक स्वप्न रचा है....
माटी का बर्तन हो जैसे
कांच का बना गिलास हो
नाज़ुक कली सा खिला हुआ
बिखरते फूल की पंखुडी सा
रात का मखमली कम्बल ओढे
स्वप्न रचा है मैंने एक
नर्म हवा के झोंकों से निकलती
महक
ऐसे ही स्वप्न निकलते मेरे
नींद पर चढ़ा चांदी का वर्क
उतार
देखा एक नया स्वप्न फिर से
मैंने
रात की मुट्ठी में दबा
किसी जुगनु सा
टिमटिमाता हो जैसे
नये की खोज में लगे वैज्ञानिक
सा
रच रहा मेरा नया संसार हो
जैसे
रंगो की माला सा
नीर सा निर्मल हो जैसे
भंवरे की गूंज सा
पुकारता हो मुझको जैसे
रात का मखमली कम्बल ओढे
स्वप्न रचा है मैंने एक
तेरी यादों से भरा
तेरे स्पर्श की खुशबू लिये
गुलमोहर के तले
फूलो की सेज पर तेरी परछाईं हो
जैसे !!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!
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