पथरीले रास्तों से भरा
पत्थर के भग्वान यहाँ हैं
कहीं खड़ा पथरीला पर्वत
कहीं पत्थर का इंसान है
बाज़ार भरे हैं संगेमरमर से
रंगीले से यहाँ कंकड़ भरे हैं
न कान किसी के
न किसी की ज़ुबान यहाँ
पत्थर से बस हिलते डुलते
घूम रहे इंसान यहाँ
पत्थर के घर बने हैं
अपनों को ही लादे खड़े हैं
पत्थर की पूजा करते पत्थर के लोग खड़े हैं
पत्थर के इन पहाड़ों तले
न जाने कितने पत्थर दबे हैं
मैं भी हुइ पत्थर की
अब मेरे भी कान नहीं बचे हैं !!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!!
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