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Thursday 4 February 2016

देश मेरा

                देश मेरा
देश मेरा कई धर्मों से बना
कई रेखाओं से जुड़ा, कई सीमाओं में बंधा
कहीं पहाड़ों से ढका
कहीं समंदर से जा मिला
कहीं गेहरे जंगलों से घिरा
तो कहीं रेत के टीबों में उभरा
कहीं गंगा तो कहीं नर्मदा
कहीं जमुना तो कहीं झेलम
कहीं कृष्ण की मथुरा
तो कहीं नानक का डेरा
कहीं चढती दरगाह पर चादर
कहीं लगता देवी दरबार
देश मेरा कई धर्मों में बंधा
कई सीमाओं से जुड़ा
बिखर रहा है हल्के हल्के
दबे पाऊँ घुसता रावण
कहीं घुस रहा शैतान है
कहीं तोड़ता सीमा दुश्मन
कहीं निगल रहा भ्रष्टाचार है
देश मेरा रो रहा,  बिलख रहा
आज बिखर रहा है
किसी कोने में दर्द भरा है
कहीं नफ़रत अंजान सी
किसी फोडे सा फूल रहा
पस से भरा फूट्ने को तैयार खड़ा
ज़ख्मी अभिमन्यु सा राजनीति के चक्र्व्युह में फंसा
कहीं द्रौपदी सा चीर हरण करवा रहा
कहीं शहीद होता अंधियारे में
कहीं बैठा कूड़े के ढेरों पर
कहीं नाली की बदबू सा मेहक रहा
कहीं भिंभिनाते मच्छर माखी से इंसान से बीमार हो चला
देश मेरा कई धर्मो से बना
कई रेखाओं से जुड़ा कई सीमाओं से बंधा

आज बिलख रहा रो रहा !!!!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!

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