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Tuesday 2 February 2016

ओ रे पँछी किधर चला !!!!!!

1   ओ रे पँछी किधर चला !!!!!!


ओ रे पँछी किधर चला......
मन बांवरा क्यूँ उड़ चला
पिंजड़ा तोड़ा तूने कैसे........
किस ओर तू बढ़ चला
थम जा ना जा तू कहीं
दुनिया बड़ी कठोर वहाँ की
जिस ओर तू निकल पड़ा
ओ रे पँछी किधर चला.......
तू न जाना जग के दस्तूर
सही गलत ना समझ सका
पिंजड़े में रह
तू कब उड़ना सीख गया.......
पंख तेरे जब काटेगा कोई
दर्द से तड़पेगा तू
मन तेरा जो चंचल बन
आज हवा मैं उड़ा चला
गिर जायेगा मर जायेगा
यों न तू उस ओर जा
जितना ऊंचा गगन तेरा है
उतना नीचा जग का दस्तूर
काट खायेगा कोइ तुझे
नोच डालेगा तेरे पंख कोई
ओ रे पँछी किधर चला......
मन बांवरा क्यूँ उड़ चला......
आयेगा फिर लौट के तू
इसी पिंजड़े में वापस इक दिन
इसमें ही संसार तेरा
आजादी के पंख कटे थे
जब पिंजड़े में सुनहरी तार जड़े थे
तूने खो दी थी सब उड़ानें

जब पिंजड़े से नैन लड़े थे !!!!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!

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