चंदा तू
“चांद” “चंदा” या कहूँ “शशि”
कुछ भी कहूँ तुझे मैं
न तू बद्ला न बदलती चाँदनी तेरी
वही शर्मा के छुप जाना तेरा
और फिर अपनी अल्हड़ बेशर्म जवानी
लिये निकल आना
कभी दर्द सा सीने में दे जाना
और कभी पूनम की रात में बेहयायी
से मुस्काना
चंदा तेरा यूँ रूठ्ना मनाना
सदियों से जो रीत चलाई
उसी का इश्क़ कह्लाना
कुछ भी कहूँ
न तू बदला न बदलती चांदनी तेरी
!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!
No comments:
Post a Comment