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Friday 19 February 2016

जादू की डिबिया



1 जादू की डिबिया

ढूँढ़ के ले आओ कोइ जादू की डिबिया
खुलते ही जो मन को बहलाये
भूले बिसरे दुख भुलाये
रस्मों के बाग में कैदी बनी मैं को
फिर आज़ाद करवाये
मेरे गुलशन को महकाये
और सतरंगी फूलो का फिर ढेर लगाये
ले आओ न जादू की डिबिया
बहते नीर को जो आसमानी रंग दे जाये
गुरबत के धागे पर मेरे आकर गाँठ लगा जाये
मैंने जो बुना था रिश्ता
उसमें पड़ी गिरहों को आकर फिर खोल जाये
सिरा जो छुटा था हाथ से उस दिन
वापस मुझे लौटा जाये
ढूँढ़ के लादो वो जादू की डिबिया
आकाश को जो फिर तारों से भर जाये
गज़ल प्यार की फिर गुनगुनाये
कोइ तो तरकीब सीखाये
रूठा यार जो बरसों से
आकर उसे मना जाये
मेरा भी इक मौला था
फिर इक बार उस से मिलवाये
ढूँढ़ के ले आओ कोइ जादू की डिबिया
मेरे लफ्ज़ों को जो उस पार पहुंचाये !!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!

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